“खामोशी की आवाज़ वही है, हर दिल की आवाज़।”
कभी-कभी इंसान के जीवन की सबसे बड़ी कहानी वही होती है, जो वह सबसे कम बोलता है।
यह मेरी अपनी कहानी है
शायद तुममें से कई लोगों की तरह — एक मिडल क्लास लड़का, जो जिम्मेदारियों से बहुत पहले बड़ा हो गया।
👶 गाँव से शहर तक का सफर
मेरा जन्म अमगांव एक छोटे से गांव में हुआ था, माँ के मायके में।
लेकिन बाद में शहर आ गया – वहाँ जहाँ मेरे पिता ने शून्य से शुरुआत की थी।
मेरे दादाजी एक साधारण घड़ीसाज़ थे, जिन्हें कबड्डी खेलने का शौक था।
एक दिन वो खेल के लिए निकले और फिर कभी वापस नहीं आए — एक ट्रेन दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई।
उसके बाद मेरी दादी और पिताजी ने खून-पसीने से घर चलाया।
💼 पिता की मेहनत और बदलाव की शुरुआत
पापा को मामा ने नौकरी के लिए बाहर निकाला और उन्होंने बहुत मेहनत करके घर खरीदा, गाड़ी ली — हमारा जीवन पटरी पर आ रहा था।
हमारे घर में मोहल्ले के लोग टीवी देखने आते थे।
वो समय इज़्ज़त का था — लेकिन ये इज़्ज़त स्थायी नहीं थी।
🌪️ फिर आया तूफान…
एक दिन पापा बदलने लगे — चिड़चिड़ापन, बड़बड़ाना, और अंततः नौकरी छोड़ देना।
हम पहले ही कर्ज़ में थे, और अब सारी ज़िम्मेदारी मेरे सिर पर थी।
मैं सिर्फ़ 12वीं में था, लेकिन घर चलाना, छोटे भाई की पढ़ाई, दादी-माँ का ध्यान — सब मेरा काम बन गया।
🛠️ पढ़ाई, नौकरी
मैंने डिप्लोमा में एडमिशन लिया, लेकिन हालात ऐसे थे कि पढ़ाई में मन नहीं लगा।
पिता के साथ ITI करने की कोशिश की, लेकिन कोई मार्गदर्शन नहीं मिला।
पैसे चुकाने थे, घर चलाना था – मैंने बसों पर काम किया, पैसे कमाए, और घर की ज़रूरतें पूरी कीं।
मैंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी, ताकि मेरा भाई पढ़ सके।
🧍♂️ रिश्तों की दूरियाँ और तानों का बोझ
रिश्तेदारों ने धीरे-धीरे दूरी बना ली।
जब मामी और नाना ने मदद की कोशिश की, तो कुछ लोगों ने कहा, “इनसे जो हो सकता है, करने दो।”
मैं टूटता गया… धीरे-धीरे भगवान से भी भरोसा हटने लगा।
💍 शादी और आज की लड़ाई
समय बीता, मैं बड़ा हुआ। भाई कंपनी में लग गया।
जब मेरी शादी की उम्र आई, तो मेरी सैलरी और बैकग्राउंड को देख रिश्तेदार पीछे हट गए।
मेरे (नाना) और मामा ने फिर से आगे आकर मेरा रिश्ता तय करवाया और खर्च भी उठाया।
आज मेरी पत्नी गाँव में नौकरी करती है और मैं शहर में — दो शहरों में, सिर्फ़ घर को चलाए रखने के लिए।
💔 आज भी लड़ाई बाकी है…
आज भी कई लोग ताना मारते हैं –
“पढ़ा-लिखा नहीं है, इसलिए तू सेटल नहीं हो पाया“
“तेरी सैलरी कम है, तुझसे क्या उम्मीद करें?“
पर क्या मैंने कोशिश नहीं की?
क्या मैंने मेहनत नहीं की?
क्या मैंने किसी का बुरा किया?
फिर भी लोग मुझे मेरी मेहनत से नहीं, मेरी तनख्वाह से आंकते हैं।
🌱 Hardil Ki Awaaz क्यों शुरू किया?
क्योंकि जैसे मैं टूटा, वैसे कई और भी टूटते हैं — पर बोल नहीं पाते।
इसलिए ये मंच है — जहाँ हर दिल बोले, हर खामोशी सुनी जाए।
🤝 अगर आपकी कहानी भी दिल से निकली है…
तो Hardil Ki Awaaz पर साझा कीजिए।
क्योंकि —
“हर खामोशी की भी एक आवाज़ होती है – और वही है, Hardil Ki Awaaz।”

